LØCK3T... भाग -1
"मैं अब यह काम नहीं करूंगा, बहुत पाप कर लिया मैंने, लेकिन अब और नहीं... मैं अपनी पूरी ताकत के साथ उस पर जोर से चिल्लाया"
लेकिन उस पर इसका कोई असर नहीं हुआ, वो मेरे करीब आई और मेरे सीने को सहलाते हुए बोली
" तुम वह बात कहते ही क्यों हो जिसे तुम कर नहीं सकते"
"रोशनी, अब बंद करो ए सब... इन सबमे कुछ नही रखा है.. तुम्हे कमी किस बात की है ?"
"मुझे समझाने की कोशिश मत करना, और तुमने मुझे अभी क्या कह कर पुकारा है? रोशनी ? " कुछ देर पहले ही उसकी मुस्कुराहट अब गुस्से में बदल चुकी थी, वह बोली... 3:00 रात बिस्तर पर क्या सो लिया मेरे साथ, तु मेरा नाम ही लेने लगा
" गलती हो गई मैम, मैंने सोचा कि....."
" क्या सोचा...?" वह बीच में ही बोल पड़ी..." तुमने सोचा कि 3:00 रात हमबिस्तर होने पर मैं तुमसे प्यार करने लगूंगी ..? और यह सब छोड़ दूंगी... अपनी औकात मत भूल, तू एक टैक्सी ड्राइवर है"
मैं चुपचाप खड़ा सिर्फ उसे देखता रहा. चुप रहने के अलावा मैं कर भी क्या सकता था. क्योंकि इस वक्त मैं जहां खड़ा था वह उस जगह की मालकिन थी
" रात को ठीक 11:00 बजे पहुंचकर, लाश को ठिकाने लगा देना... " वह अपना फरमान जारी करते हुए बोली... "और चिंता मत करो, आज के बाद तुम्हें तुम्हारा मेहताना मिल जाएगा"
मैं वहां खड़ा उसे देखता रहा, इस उम्मीद में कि कहीं वह बदल जाए और यह सब करना छोड़ दें.. लेकिन उसकी आंखों में इस वक्त एक खूंखार जानवर दिख रहा था.
" जी मैम, मैं आ जाऊंगा..." बोलकर में भारी कदमों के साथ वहां से बाहर आया, टैक्सी चालू की और निकल पड़ा सड़कों पर...
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मैं इस वक्त कहां जा रहा था, किस तरफ जा रहा था इसका मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था. आंख के सामने इस वक्त कई खयालात उभर रहे थे, कभी मुझे रोशनी दिखाई देती, तो कभी उसका वह कत्लखाना... जहां वह मासूम लोगों की जान लेती थी. तो कभी मुझे वह वक्त नजर आता जब मैंने अपने महीने भर की कमाई को इकट्ठा कर एक अच्छे से डॉक्टर के पास गया और उसने मुझे खबर दी कि... मुझे कैंसर है और यह बीमारी मेरे पूरे शरीर को धीरे-धीरे मौत की तरह घसीट रही है... मुझे यह स्वीकार कर लेना चाहिए था, मुझे मौत को अपना लेना चाहिए था. तो शायद वह नहीं होता है जो अब होने वाला था. पर मैंने ऐसा नहीं किया, बिल्कुल भी नहीं...
" इसका इलाज तो हो जाता है ना ?" घबराते हुए मैंने डॉक्टर से पूछा
" हो जाता है लेकिन, अब तुम्हारा नहीं हो सकता... "
" क्यों... " अंदर से मैं चिल्लाते हुए, रोते हुए और बाहर से बिना रोए और बिना चिल्लाए शांत लहजे में पूछा
"तुम अब थेरेपी वाले स्टेज मे हो तुम और यदि तुम अपना इलाज भी करा पाओगे तो इसके लिए बहुत खर्च होगा.... पैसे है तुम्हारे पास...?? कई महीनों की sal"
दिल भर आया, आंखें रोने के लिए तत्पर थी, गला सूख चुका था.. लेकिन मैंने वहां खुद को कैसे भी करके संभाले रखा और वहां से बाहर आया... उस दिन मैं अपने किराए के मकान में नहीं गया, दिनभर सड़कों पर यूं ही खाली टैक्सी चलाते हुए बस अपने अंजाम के बारे में सोचता रहा, ऐसा अंजाम जिसे अब कोई नहीं बदल सकता था. मैं पल पल मर रहा था, घड़ी का आगे बढ़ता हुआ और कांटा मुझे नजदीक आ रही मौत का एहसास करा रहा था.
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उस दिन साला पहली बार खुद के गरीब होने पर इतना दुख हुआ मैं.. वह पूरी रात मैंने यूं ही सड़कों पर टैक्सी चलाते हुए गुजारी, मौत तो अभी दूर थी लेकिन उस रात मैं हर वक्त तड़प तड़प कर मरा. मुझे सबसे ज्यादा चिंता खुद के मौत की नहीं थी बल्कि इस बात से थी कि मेरे जाने के बाद गुड़िया का क्या होगा ? वह तो अभी बहुत छोटी है, उसका तो मेरे सिवा इस दुनिया में कोई और है भी नहीं... मेरे मरने के बाद क्या करेगी वह, कहां जाएगी.. किसके सहारे अपनी जिंदगी जिएगी और कैसे ? सबसे बड़ी फिक्र इस बात की हो रही थी कि मेरी छोटी सी चंचल बहन मेरे मरने का सदमा कैसे बर्दाश्त करेगी. उसे तो इस साल स्कूल भी भेजना है, अब यदि मैं ही नहीं रहा तो कौन यह सब करेगा उसके लिए......
" संतोष..." मेरे एक दोस्त का नाम मुझे याद आया
मेरी इस श्रापित जिंदगी में मैं सिर्फ तीन को अच्छी तरह से जानता था.. एक तो मेरी बहन गुड़िया, दूसरा संतोष और तीसरा था मेरे टैक्सी का नंबर.. इस वक्त मुझे संतोष ही एकमात्र सहारा दिखाई दे रहा था, लेकिन अगले ही पल मुझे उसके, उसकी बीवी से मारपीट की घटना याद आई जिसके बाद उसकी बीवी ने खुदकुशी कर ली थी....
" नहीं, वह साला बहुत बड़ा कमीना है, उसका कोई भरोसा नहीं वह कुछ पैसों के लिए गुड़िया को बेच.... " आगे मैं सोच नहीं पाया क्योंकि मेरे सामने इस वक्त एक लड़की खड़ी थी, और उसके इस तरह अचानक से सामने आने के कारण मैंने जोरदार ब्रेक मारा.
"अग्रसेन नगर चलोगे ? "उसने आकर मुझसे पूछा
" माफ कीजिए"
" सोच लो"
"अब सोचने के लिए वक्त ही नहीं बचा है, किसी दूसरे को पकड़ो... "कहते हुए मैंने टैक्सी फिर से स्टार्ट कर दी
"यदि तुम मुझे अग्रसेन चौक तक छोड़ोगे तो यह 500 500 के ए दोनों नोट तुम्हारे... "अपने पर्स से नोट बाहर निकाल कर मुझे दिखाते हुए वह बोली...
"ज्यादा सोचो मत यह मौका बार-बार नहीं आता"
उसने मुझे ना सोचने के लिए कहा था, लेकिन उसके उलट अब मैं सोचने लगा था. एक टैक्सी ड्राइवर के लिए 1000 रुपए बहुत ज्यादा होता है और अभी जो हालत मेरी थी उसके हिसाब से तो यह बेहद जरूरी था कि मैं उसे उसकी मंजिल तक छोड़ू और हजार रुपए जो उसके हाथ में है उसे अपने हाथ में ले लूं. अभी मैं सोच ही रहा था कि वह बोली...
" ओके...1500... अब क्या बोलते हो ?" ऐसा बोलते हुए उसने 500 का एक और नोट निकाला
अभी इस वक्त मैंने जहां टैक्सी रोकी थी वह शहर से एकदम दूर एक जंगली एरिया था. जहां रात के 7:08 बजे के बाद साइकिल वाला तक दिखाई नहीं देता और जो लड़की इस वक्त बाहर खड़ी थी वह जरूर बहुत ही अमीर होगी... ऐसा मैंने अंदाजा लगाया और उसकी तरफ एक नजर देखा. मुझे उसे देखने से पहले अपनी आंख फोड़ लेनी चाहिए थी, आंखों पर पट्टी बांध लेना चाहिए था और वहां से तुरंत निकल जाना चाहिए था.. लेकिन मैं रुका, और उसकी तरफ देखा भी....
गोरा रंग, अच्छी खासी हाइट, माथे पर एक काला लंबा बिंदी, कानों में बड़े-बड़े झुमके और होठों पर एक रहस्यमई मुस्कान... मेरी नजर अब भी उस लड़की पर टिकी हुई थी जो इस वक्त पंद्रह सौ रुपये लिए हुए टैक्सी के बाहर खड़ी थी.
" अच्छा चलो, जब तुम्हें जाना ही नहीं है तो मैं तुम्हें क्यों फोर्स करूं ...." जब बहुत देर तक मैं बिना कुछ बोले उसे देखता रहा तब वह बोली और वहां से सामने तरफ सड़क पर चलने लगी
" मैं तैयार हूं, चलिए... "खिड़की से अपना सर निकालकर मैंने उसे आवाज दी
वह मुस्कुराते हुए पलटी और आकर सीधे टैक्सी में पीछे बैठ गई. अग्रसेन चौक वहां से लगभग 1 घंटे की दूरी पर था और वहां बुकिंग पर किसी टैक्सी वाले को ले जाना... अधिक से अधिक 300 रुपए लगते थे, लेकिन मुझे तो पंद्रह सौ मिल रहे थे, इसलिए मैं मना नहीं कर पाया. आज मैं खुद उखड़ा उखड़ा सा था इसलिए सुनसान सड़क होने के बावजूद में टैक्सी बहुत दिन में चला रहा था, तभी वह बोली...
"अभी-अभी ड्राइविंग सीखी है क्या"
उसके अचानक इस तरह बोलने से मैच होगा और पीछे मुड़कर उसकी तरफ देखा..
"अभी-अभी ड्राइविंग सीखी है क्या... "उसने अपना सवाल दोहराया
" 5 साल हो गए"
" तो फिर तेज चलाओ, जिस स्पीड से हम जा रहे हैं उसमें तो अग्रसेन चौक तक पहुंचने में कल सुबह हो जाएगी"
उसके कहने पर मैंने एक नजर मीटर पर डाली, वह सच बोल रही थी.. टैक्सी अभी 40 की स्पीड से चल रही थी. मैंने टैक्सी की स्पीड बढ़ाई और तेजी से अग्रसेन चौक की तरफ बढ़ने लगा. उस वक्त मैंने एक चीज गौर की और वह यह कि जो लड़की इस वक्त पीछे बैठी है, वह मुझे घूर रही है, जबकि बाहर का नजारा मुझसे लागुना अच्छा था देखने के लिए, घूरने के लिए...
" किसी प्रॉब्लम में फंसे हो क्या ? "उसने अपना अगला सवाल दागा
सुबह से मैं एक दर्द सीने में लिए हुए था और अंदर ही अंदर घुट रहा था. मैं अपना दर्द किसी को बताना चाहता था, किसी के साथ अपना दर्द कम करना चाहता था लेकिन मेरी इस जिंदगी में इस वक्त ऐसा एक भी शख्स नहीं था जिसे मैं यह बता पाता. इसलिए जब उसने मुझसे पूछा तो बिना एक पल की देरी के मैं तुरंत बोल पड़ा... और वह अनजान भी थी जो कुछ देर में मेरे टैक्सी से उतरने वाली थी, इसलिए उसे बताने में मैंने कोई... मतलब मैंने कुछ सोचा ही नहीं और बस उसके पूछने पर...
" मुझे कैंसर है"
" ओह !" वह सिर्फ इतना ही बोली
Arman
26-Nov-2021 11:51 PM
Nice
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Zeba Islam
21-Nov-2021 05:57 PM
Nice
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